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समता का दीपक |
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हर उर में समता का दीपक
जले, प्रकाश करे
समत्वम् योग
उच्यते समझाती हमको गीता
सारे जग को अपना समझा, सदा वही जीता
ऐसा एक समाज हो जिसमें
घर-घर दिया जरे
हर-मन-में-उत्सव-हो,-
जगमग-जगमग-ज्योति-जले
मन का अंधकार दूर कर, पावन पाथ चलें
सामाजिक समरसता लेकर
महकें बाग हरे
मुदित अयोध्या-
नगरी लाखों दिये जलाती है
घर में लौटे राम अप्सरा मंगल गाती हैं
जम्बूद्वीप लुटाता खुशियाँ
शंखनाद घहरे
- विजय सिंह
१ नवंबर २०२४ |
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