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         मैं माटी का दिया


मैं माटी का दिया !

कूटा-काँड़ा गया शुरू में
पीटा-पाटा गया बीच में
केवल थोड़ा पानी पीकर
आधा जीवन रहा कीच में
एक अनोखे कलाकार से-
सुन्दर रूप लिया
मैं माटी का दिया !

फिर आयी तपने की बारी
कर ली कठिन तपस्या भारी
प्रभु ने ऐसा वर दे डाला
कच्चे को पक्का कर डाला
होठों पर अंगार सजाकर
अमृत पान किया
मैं माटी का दिया !

मैं हूँ जग में एक अकेला
जिसने जीवनभर दुख झेला
बाती-तेल मिले फिर जलकर
अंत किया जीवन का मेला
यही परम सन्तोष उजाला दे
अँधियार जिया
मैं माटी का दिया !

अपने जैसे भोले-भाले
अनगिन दीप जलाये मैंने
महलों से लेकर कुटिया तक
आँगन-द्वार सजाये मैंने
घोर अमा की छाती पर-
बोया उत्सव का बिया
मैं माटी का दिया

- उमा प्रसाद लोधी
१ नवंबर २०२४
 

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