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        सुहागिन देहरी दीप धरे


सुहागिन देहरी दीप धरे
मन का आँगन हुआ सुनहला
किरन किरन उजरे

तुलसी चौरा घी के दीपक
मन्दिर स्वस्तिक द्वार रंगोली
बहन लिए हाथों में मोदक
मां के अधरों शक्कर बोली
खुशियों की सुख हल्दी घर में
द्वार द्वार बिखरे

घर आए हैं सबके अपने
जीवन जैसे हो वन नंदन
नयनों के मेहमान स्वप्न हैं
तोरन कहती है अभिनंदन
आम्र वनों सा मन बौराए
कदम कदम निखरे

रातों ने आंजा है काजल
राहों में फैला अँधियारा
मावस के काले सागर में
डूबा जैसे यह जग सारा
लेकिन एक दीप पी लेता
तम के विष सगरे

सुहागिन देहरी दीप धरे

- श्याम सुन्दर तिवारी
१ नवंबर २०२४
 

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