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          दीवाली सुन


जिनके दीपों में तेल नहीं
उनसे क्यों तेरा मेल नहीं
दीवाली सुन!
दीवाली सुन

छत दीवारें कोने-कोने
बेरंगे घर में अनहोने
लेकर सपने टूटे- फूटे
जिनको हैं ॲंधियारे ढोने

उनके सॅंग जीना खेल नहीं
दीवाली सुन!
दीवाली सुन

छीना-झपटी वाले को सुख
सहने वाले को दुख ही दुख
इसको किस्मत कैसे कह दें
मानव-निर्मित है जिनका रुख

क्यों सर्वसाम्य सम्मेल नहीं
दीवाली सुन!
दीवाली सुन

- रमेश प्रसून

१ नवंबर २०२४
 

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