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          नूतन दीप धरें


बीते साल बहुत गुँगुआते बाती नयी बरें
आओ तम की ड्योढ़ी पर हम
नूतन दीप धरें

उचित और अनुचित के चक्कर बैठे दिशा विलोम
अर्घ्य उजालों की चाहत के हुए न अब तक होम
अपनी-अपनी जिद से हम भी
कुछ तो चलो टरें

नाप गले के लिये फिर रहे खुद ही भाई-भाई
नयनों की कोरों के छज्जे अवसादों की काई
समझाइस की झाड़-पोंछ से
इनको धवल करें

विश्वासों पर घात लगाए बैठे निशदिन व्याल
मन के कोनों छल-प्रपंच के अब तक मकड़ी-जाल
इस दीवाली पूरे मन से
हृदयाँगन बुहरें

फूफा-फूफी नानी मामी रिश्ते हुए पराए
खिन्न हमारे मन को बतरस कोई नहीं दुलराए
किसको ताकें ? फुलझरियाँ बन
हम ही आज झरें

दो डग आगे आ हम करलें रूठों का सत्कार
अभिनन्दन की रचें रँगोलीउर के उजड़े द्वार
प्रेम-भाव निश्छलता के ही
घर-घर चौक पुरें

- राजकुमार महोबिया

१ नवंबर २०२४
 

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