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         इस दिवाली


इस दिवाली उजाले से भरे
कुछ दीपक जलाएँ
अँधेरे मानस गृहों में
ज्ञान-दीपक बाल आएँ

अँधेरा गढ़ते हुए
विश्वास के सब छद्म तोड़ें
घट गढ़े संदेह के
जीने न देते, उन्हें फोड़ें

जान लें निहितार्थ
ऐसे परोसे उपदेश पद के
जो हमारे पाँव छीनें
हमें ही काँधा बनाएँ

ज्ञान ऐसा ज्ञान, जिस पर
विवेकी मन स्वस्ति पा ले
व्यर्थ की उत्तेजना के
शब्द क्यों नाहक उछाले

दूर तक स्थिर और शीतल
राज किरणों का अकंटक
दीप जल नि:शेष करदे
कलुष तम की अर्गलाएँ

- राजा अवस्थी
१ नवंबर २०२४
 

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