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         दीप जगमग


मावसी काली निशा में धरा पर उजियार फैला
दीप जगमग हर रहे हैं हर दिशा में
तिमिर मैला

ज्योति किरण
बिखर-बिखर, चमक रही इधर उधर
बाँटती उजियार के कण, तमस से करती हुई रण
हरे तम काला कसैला

चंद्रमा रहा
निहार, छुप धरा के दीप हार
विजित प्रकाश रश्मियाँ, निराश आज अंधकार
दर्प खोता है विषैला

देह दीपक
हवन कर के यामिनी का तम हरेगा
भोर की करता प्रतीक्षा संग बाती के ढलेगा
युगल प्रेमी कैस-लैला

- ओम प्रकाश नौटियाल
१ नवंबर २०२४
 

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