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          असल दिवाली


मन से मन के दीप जलें जब
सुर औ ताल सजे हर मन की
सुधियाँ जब मीठा रस घोलें
तब असल दिवाली होती है

भावों की गहराई में जब
चिंतन का कोना रौशन हो
हम खुद ही खुद को आँकें जब
तब असल दिवाली होती है

मन से मन के भेद मिटे जब
स्वच्छ मुँडेरें हो हर मन की
छोटी छोटी सोच मिटे जब
तब असल दिवाली होती है

अपने सच में अपने हों जब
नहीं झूठ की बुनियादें हों
रिश्ते चंदन से महकें जब
तब असल दिवाली होती है

हर आँगन में दीप जले जब
हर आँगन में उजियारा हो
घर गरीब का रौशन हो जब
तब असल दिवाली होती है

माटी के दिये जलाओ जब
मन की कुटिया आलोकित हो
हर घर में खुशहाली हो जब
तब असल दिवाली होती है

- निर्मला जोशी 'निर्मल'
१ नवंबर २०२४
 

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