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         दीप ज्योति


जगमग हैं दीप जले हर्षो हर्षाओ रे
दीप ज्योति मुखरित है उत्सव
मनाओ रे

सूर्य ढला साँझ हुई रात उतर आएगी
सामूहिक दीप-माल तिमिर को भगाएगी
रौशनी ही जीतेगी निर्भय
हो जाओ रे

एक दीप जलता है कक्ष जगमगाता है
सहस्त्र -दीप जलने पर दिन भी शर्माता है
उज्ज्वल भविष्य के मधुर
गीत गाओ रे

जगमग है कक्ष-कक्ष जगमग घर-आँगन है
घड़ी-घड़ी शुभ-शुभ है चौक -चौक पावन है
ऐसे में हर उर में चेतना
जगाओ रे

- मुकुट सक्सेना
१ नवंबर २०२४
 

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