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         गयी मावस मछेरिन


आ गई मावस मछेरिन
रोशनी का जाल लेकर

दीप जगमग
हो रहे हैं, उगे हों ज्यों शत दिवाकर
यामिनी ने ओढ़ ली है, सुनहरी किरनों की चादर
वरण खुशियों का किया है
रश्मियों की माल लेकर

मन प्रफुल्लित
कर रही है, दीपकों की झिलमिलाहट
और अन्तर में बसी मासूम सी वह खिलखिलाहट
गुदगुदी करती हृदय में
मृदुल सुधि के थाल ले कर

अँधेरे की मछलियाँ
भी ढूँढती हैं कोई कोना
मन्त्र सारे जप लिये पर चल न पाया कोई टोना
कहाँ जायेंगी विदग्धा
अटपटी सी चाल ले कर

- मधु प्रधान
१ नवंबर २०२४
 

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