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        नन्हा दीपक


सहमी-सहमी नर्म मखमली
दी सर्दी ने दस्तक
साथ दिवाली के

समय विदा का देख सामने
गर्मी भड़क उठी है
बुझते दीपक सी जाने क्यों
लगती मूढ़ हठी है
बहन शरद का शुभ स्वागत कर
लिख अनुपम मुक्तक, या
गीत दिवाली के


वातावरण हुआ है निर्मल
लौट चुकी है बरखा
पावस लिखकर छंद-सोरठे
रसिया ऋतु अति हरखा
पंछी कलरव संग ठुमकते
पर्वत उपवन नर्तक
काव्य दिवाली के

झिलमिल दीपक निज आभा से
होड़ करे दिनकर से
काली मावस को धमकाकर
दूर करे हर घर से
शांत चित्त इस कोलाहल में
बाँच रहा है पुस्तक
पृष्ठ दिवाली के

- कल्याण सिंह शेखावत
१ नवंबर २०२४

 

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