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         तारे दीवाली में


एक दिया उस घर में भी रख दें
जहाँ अँधेरा पाँव पसारे
सोया है

माटी का ऋण चुकता नहीं चुकाए
डूब गया दिन रातों ने तम गाए
लिपे-पुते घर को उजला लिख दें
भोर चिरैया ने आँगन
सब धोया है

रोटी सा चंदा परोसें थाली में
खील-बताशे तारे दीवाली में
लाभ नहीं शुभ का कोना रच दें
धन्य धान से मन ने
हर सुख बोया है

- जयप्रकाश श्रीवास्तव

१ नवंबर २०२४
 

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