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         नदी-घाट सीढ़ियाँ सजाये


अंजुरी में
दीप जगमगाये
सुधियों में भीमसेन गाये

भाभी का
गोरा मुख चन्द्रमा
माँ जैसे फूलों की थाली
वेदमंत्र बाँचते पिता
आरती सजाये घरवाली
रामज्योति
सरयू को भाये

मौसम के
तेवर भी बदले
धान हरे झूमते अगहनी
गेंदा, गुड़हल गुलाब महके
इत्र गंध वाली हर टहनी
यमुना तट
बांसुरी बजाये.

एक अमॉ
ऐसी भी प्यारे
हार गयी पूनम की रातें
द्वार द्वार अल्पना रंगोली
मधुर मधुर हँसी और बातें
नदी -घाट
सीढ़ियाँ सजाये

पर्वत की
जगमग सी घाटी
देवदार देर तक निहारे
गढ़वाली शिमला, कश्मीरी
मीनाक्षी काजल को पारे
मन काशी
तन प्रयाग जाये

- जयकृष्ण राय तुषार
१ नवंबर २०२४

 

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