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          दीप-दिवाली


दीप-दिवाली के पर्व पर
जब घर-घर जगमग हो चले
धता बताने मावस को
अनगिन दीप शुभदायक जले
तब रोशनियों के आँगन में
हम-सब मिलकर साथ कहें
आओ दीये जलाएँ हम

एक दीया जलाएँ हम प्रगाढ़ सम्बन्ध का
टूटते रिश्तों की चौखट पर
एक दीया सौहार्द का
नफरत की खाई को पाटते मुहाने पर
एक दीया प्रेम का
सुप्त होती संवेदनाओं की पलकों पर
एक दीया विश्वास का

तमाम निराशाओं के बाद भी
समाप्त न होने वाली आशा पर
एक दीया जलाएँ हम विवेक का
न हो ताकि कोई फैसला अज्ञान से भरा
इसी तरह आओ मिलकर मना ले
दीपावली मन की... स्वप्नों की...

- आभा खरे
१ नवंबर २०२४
 

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