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            पाँच पर्व


पाँच तत्व की देह है, ज्ञाननेद्रिय हैं पाँच।
कर्मेन्द्रिय भी पाँच हैं, पाँच पर्व हैं साँच।।

माटी की यह देह है, माटी का संसार।
माटी बनती दीप चुप, देती जग उजियार।।

कच्ची माटी को पका पक्का करती आँच।
अगन-लगन का मेल ही पाँच मार्ग का साँच।।

हाथ न सूझे हाथ को अँधियारी हो रात।
तप-पौरुष ही दे सके हर विपदा को मात।।

नारी धीरज मीत की आपद में हो जाँच।
धर्म कर्म का मर्म है पाँच तत्व में जाँच।।

बिन रमेश भी रमा का तनिक न घटता मान।
ऋद्धि-सिद्धि-बिन-गजानन-हैं-शुभत्व-की खान।।

रहें न संग लेकिन पुजें कर्म-कुंडली बाँच।
अचल-अटल विश्वास ही पाँच देव हैं साँच।।

धन्वन्तरि दें स्वास्थ्य-धन हरि दें रक्षा-रूप।
श्री-समृद्धि, गणपति-मति देकर करें अनूप।।

गोवर्धन पय अमिय दे अन्नकूट कर खाँच।
बहिनों का आशीष ले पाँच शक्ति शुभ साँच।।

पवन, भूत, शर, अँगुलि मिल हर मुश्किल लें जीत।
पाँच प्राण मिल जतन कर करें ईश से प्रीत।।

परमेश्वर बस पंच में करें न्याय ज्यों काँच।
बाल न बाँका हो सके पाँच अमृत है साँच।।

- संजीव सलिल
१ नवंबर २०२४
 

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