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         दीपों की हुंकार


कण-कण दीपों से सजा मिटा तिमिर का छोर
मावस के संसार में खिली उजेरी भोर

दादी रचकर मांडना लीप रही हैं भीत
कथा सियावर राम की अच्छाई की जीत

खील बताशे बाँटतीं भाभी जोहे बाट
जाने कब आवत रहे पिया जो गये हाट

हँस-हँस गाती बेटियाँ गीत मंगलाचार
ले आई दीपावली खुशियों की बौछार

मुँडेर पर सजने लगे जगमग जगमग दीप
दीप शिखाओं से झरे भर - भर मोती सीप

घर आँगन में गूँजती घंटी की गुंजार
सुनकर तम भागा फिरे दीपों की हुंकार

चकरी और अनार से जगमग दमके गाँव
विफल सारे होने लगे अंधकार के दाँव

धन तेरस दीपावली गोधन भाई दूज
सुन्दर सरस सुहावनी पंच परब की पूज

खुश हो दादी बाँटती सबको खूब उपहार
उत्सव देखो बन रहे खुशियों का आधार

दीप जले नव आस के सजा आज परिवेश
तमसो मा ज्योतिर्गमय दीपों का सन्देश।

- पारुल तोमर
१ नवंबर २०२४
 

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