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पावन यह दीपावली |
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संस्कारों की गंध
हो, दुर्गुण का वनवास।
पावन यह दीपावली, हो प्रकाश से खास।।
हर्ष भरो हर दीप में, करो नहीं अब भेद।
रोशन हो सारा जहाँ, लिए सुगन्धित मेद।।
द्वारों से पूछे नहीं, कोई वन्दनवार।
क्यों अब तक भी ज़िन्दगी, तम में रहे गुज़ार।।
दिवनाली के तेल में, दुख दो सभी उड़ेल।
कितनी खुशियाँ ये समय, लाया बाँध नकेल।।
उज्जवल कर दो रात की, यह सूनी-सी गोद।
गली-गली दीपक जला, कर आमोद प्रमोद।।
- अशोक रक्ताले
१ नवंबर २०२४ |
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