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         सजी यामिनी


सजी यामिनी कर सिंगार
दीपक प्रज्वलित हुए हजार

बिखरा चारों दिशि आलोक,
हुआ विलुप्त तमस सँग शोक
छत पर नाचा, हुआ विभोर
हर्षित होकर मन का मोर
करती उज्ज्वल नव अभिषेक
स्वागतार्थ शुभ वंदनवार

इन्द्रधनुष छाया आकाश
आभा स्वर्णिम, धवल प्रकाश
विविध रंग मुस्काए फूल
निर्झर सलिला, विहँसे कूल
पग पग पनपे प्रीति प्रसंग
झंकृत हुए हृदय के तार

रश्मि पर्व के ढँग अभिराम
सबको खुशियों के पैगाम
सुखद भोर सँग चमकी धूप
हटा आवरण निखरा रूप
स्नेह अपरिमित, भाई दूज
बहन निहारे घर का द्वार

- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल 

१ नवंबर २०२३
   

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