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       अल्पनाएँ द्वार पर


आ रहा है और उजलापन दिशाओं में
रच रही हैं बच्चियाँ
कुछ अल्पनाएँ द्वार पर!

कहीं ताज़े फूल रक्खे, कहीं गहरे रंग बोये
हो रहा है पुनः आवाहन, जगेंगे मंत्र सोये
घुल रहा है नया आमंत्रण हवाओं में
रच रही हैं बच्चियाँ
कुछ अल्पनाएँ द्वार पर!

खूँट भरने, आयु गढ़ने दीप छोटे बालने के
आ रहे बाहर घरों से गीत काजल पारने के
नया जोड़ा जायेगा फिर कुछ प्रथाओं में
रच रही हैं बच्चियाँ
कुछ अल्पनाएँ द्वार पर!

कहीं से कुछ नयी किरणें, और सब पीताभ
लिख गया यह कौन आ दीवार पर शुभ-लाभ
जियें पलभर जिन्दगी भी व्यस्तताओं में
रच रही हैं बच्चियाँ
कुछ अल्पनाएँ द्वार पर!

- शुभम् श्रीवास्तव ओम

१ नवंबर २०२३
   

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