अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

   

          आशाओं के दीप


तम की अवधि हुई है लम्बी
उजियारों को पास बुलाएँ
तारों के कंदील बाँध कर
चिर ज्योति से धरा सजाएँ

धुआँ धुआँ हैं दसों दिशाएँ
भटकी भटकी उड़ें हवाएँ
बैर द्वेष की धूल बुहारें
जल थल नभ निर्मल कर जाएँ
चलो अमन के दीप जलाएँ

बारूदों की गंध हवा में
चीत्कार और रुदन हवा में
अग्नि वर्षा रुके कभी तो
टूटा जन विश्वास जगाएँ
आशाओं के दीप जलाएँ

धूप बिखेरे नेह की गर्मी
चंदा बाँटे शीतल नरमी
बदली छिटके रंग प्यार के
इक दूजे को गले लगाएँ
मन से मन की ज्योत जलाएँ

सागर नदिया अमृत पेय हो
धरती अम्बर मंगलमय हो
जन जन निर्भय, कण कण सुखमय
ज्योति कलश भू पर छलकाएँ
दीपों का संसार बसाएँ

- शशि पाधा 

१ नवंबर २०२३
   

अंजुमन उपहार काव्य चर्चा काव्य संगम किशोर कोना गौरव ग्राम गौरवग्रंथ दोहे रचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है