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मन
का दिया जलाएँ |
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आओ मन का दिया जलाएँ
हवा विषैली करके, सबको बाँट रहे हैं
कहे अगर कोई तो, उसको डाँट रहे हैं
पहले गड्ढा किया, उसे फिर पाट रहे हैं
जिस डाली पर बैठे, उसको काट रहे हैं
खुद समझें ये बात और को भी समझाएँ
आओ मन का दिया जलाएँ
खुद से हो जो प्यार, सत्य की ध्वजा उठाएँ
सबको पोषित करें, गीत धरती के गाएँ
जन-मन मिलकर चले,जगें उसमें आशाएँ
खड़ी हवा में की दीवारें, उन्हें हटाएँ
ऐसा कुछ कर सकें, निकलकर बाहर आएँ
आओ मन का दिया जलाएँ
ये अपनी प्यारी धरती, हम सबका ही घर
एक साथ चल रहे, देख लो एक नाव पर
पार लगेंगे या डूबेंगे, अब यह हम पर
किस पाले में खड़े हुए हम, इस पर निर्भर
इतने भोले नहीं आप, जो हम समझाएँ
आओ मन का दिया जलाएँ
- रजनीकांत शुक्ल
१ नवंबर २०२३ |
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