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         मन में दीप जले


जब सारी धरती आन मिले
जब मानवता का स्नेह जगे
जब हर मानव बंधु-सा लगे
तब मन ही मन में दीप जले

जब इक दूजे का साथ रहे
जब अमन चैन का नाम रहे
जब मात-पिता से प्यार रहे
जब मन ही मन में दीप जले

जब कोई न भेदभाव रहे
जब ऊपरवाला साथ रहे
जब रावण का नहिं मान रहे
तब मन ही मन में दीप जले

जब हर सीता की लाज रहे
जब रोटी कपड़ा मकान रहे
जब जीने का अधिकार रहे
तब मन ही मन में दीप जले

- नितेश शाह
१ नवंबर २०२३
   

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