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         मन का दीप


बाती जलने लगी सत्य की जब विश्वास लिए
ज्योति दीप की देख धरा का
अंधकार भागा

अफवाहों से डरकर जीना भी कैसा जीना
डर ने ना जाने कितनों का अहोभाग्य छीना
संघर्षों के पृष्ठभूमि की यही भूमिका है
आलोकित हो गया समय पर
जो मन से जागा

कदम कदम पर प्यार खड़ा है कदम कदम धोखा
रंग चढ़ा जिसमें साहस का रंग वही चोखा
जंग जीतने की उमंग के ढंग निराले हैं
जग जगमग हो, इसी चाह मे
जलता है धागा

परहित मे जो रहे समर्पित वही असल नेता
एक दीप की तरह चतुर्दिक खुशियाँ भर देता
उजली चादर ओढ़ सका वो काली दुनिया में
जिसने काया माया का सब
अहंकार त्यागा

घात लगाकर अंधियारों के झुण्ड चले होंगे
आजादी के लिए कई कुलदीप जले होंगे
जीवन के हर मौसम में शुभ दीवाली होगी
मन का दीप जलाए रखना
बिना किए नागा

- डॉ अशोक अज्ञानी
१ नवंबर २०२३
   

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