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दीपों का
त्यौहार |
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सन्ध्या ने दीपक
जला, किया नवल शृंगार
जगमग करता आ गया, दीपों का त्यौहार
दिवाली के दीप और, ये तारों की छाँव
तम को जाना ही पड़ा, आखिर उल्टे पाँव
देखा होगा आपने, भाग गया अँधियार
दीपक-बाती ने लिया, उजियारे का भार
सपने सब साकार हों, फूल खिले हों द्वार
हर पल खुशियों से भरे, दीपों का त्यौहार
लक्ष्मी जी खुद आ गईं, चलकर आँगन-द्वार
सुख-समृद्धि खुशियाँ लिये, देने प्यार अपार
दिवाली नभ से यहाँ, उतरी आँगन-द्वार
बाती बाली साँझ ने, कर सोलह शृंगार
दीपक की ज्योति जली, फैल गया उजियार
दिवाली जगमग हुई, झिलमिल आँगन-द्वार
मावस के अँधियार में, लगी कचहरी खास
दीप गवाही में खड़े, बाती जले उदास
झिलमिल तारे आ गये, बनकर इक त्यौहार
नभ की दीवाली खिली, अपने आँगन-द्वार
दीपक-बाती का चलो, आज मनाएँ पर्व
अँधियारों पर जीत का, हम सब करते गर्व
दीपमालिका आ गई, कर अभिनव शृंगार
जगमग-जगमग दे रहा, दीपक लौ को प्यार
- सुरेन्द्र कुमार शर्मा
१ नवंबर २०२३ |
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