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स्वस्तिक औ'
शुभलाभ |
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जुड़ने को तो जुड़
गए, आँधी और अंधेर
फिर भी दीपक कर रहा, अंधियारे को ढेर
हमने आयोजित किया, दीप-महोत्सव गाँव
जिसे देख कँपने लगे, अंधकार के पाँव
बाग-बाग होकर धरा, गाती राग विराग
जब धरती पर जल उठे, चारों ओर चिराग
सोचो तो यह सूर्य है, सोचो यही महीप
अंधियारे से लड़ रहा, एक अकेला दीप
मन मन्दिर के द्वार पर, धरा किसी ने दीप
मन तुलसी चौरा हुआ, तन खुशियों की सीप
फैल गया आकाश में, सूरज का पीताभ
किरन धरा पर लिख रहीं, स्वास्तिक औ' शुभ-लाभ
सत्यशील राम
त्रिपाठी
१ नवंबर २०२३ |
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