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दिपावलि
की रौनकें |
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त्योहारों की धूम
ले, आया कार्तिक माह
हुई गुनगुनी धूप भी, मन में भरे उछाह
दीपावलि की रौनकें, फुलझड़ियों के रंग
हो जाते द्विगुणित अगर, अपने भी हों संग
दीप जले रौनक हुई, जगमग ऑंगन द्वार
हर घर पूनम सा लगे, हुई अमा की हार
तारावलि है गगन पर, नीचे दीपक वृन्द
दोनो मिल कर रच रहे, उजियाले के छन्द
फुलझड़ियों सी हँसी दी, मन में भरी उमंग
दीपावलि ने भर दिये, जीवन में फिर रंग
रंगोली है द्वार पर, मन में भरा उछाह
हर कोना रोशन हुआ, करे अँधेरा आह
रुनझुन-रुनझुन हो रही, पायल की झनकार
नई दुल्हन दीपक रखे, आँगन देहरी द्वार
ऐपन से रँग कर कलश, कोने-कोने चौक
गूँज रहे शुभ मन्त्र भी, अप्रतिम है आलोक
- डॉ. मधु प्रधान
१ नवंबर २०२३ |
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