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दीपक के अहसान |
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गुजरी भीषण आँधियाँ,
आए झंझावात
जूझ दीप की वर्तिका, लाई नवल प्रभात
बहुत घना अँधियार है, हाथ न सूझे हाथ
जिम्मा ढोया दीप ने, सैनिक बनकर साथ
युगों-युगों से दीप की, रही तमस से होड़
मेहनतकश किसान-सा, श्रम करता जी तोड़
दीपक ने तम को लिखे, जला-जला कर खून
रहे चुनौती से भरे, पत्रों के मजमून
अँधियारा जब फेंकता, मछुए जैसा जाल
दीप कुतरता मूष-सा, उसकी हर इक चाल
घनी अमावस रात में, दीप लगे उपमान
जैसे दुखिया के अधर, खिल आई मुस्कान
कुटिलाई अँधियार की, फैलाए आगोश
पर उजियारा लड़ रहा, थामे अपने होश
दीपक जलकर कर रहा, औरों पर उपकार
कुम्भकार घर कब छँटा, गुरबत का अँधियार
बनना है तो तुम बनो, धीर-वीर-गम्भीर
दीप जले निष्कम्प ज्यों, तम को देता चीर
लाख भले ही लाँघ ले, उन्नति के सोपान
मानव चुका न सकेगा, दीपक के अहसान
- कुँअर उदयसिंह 'अनुज'
१ नवंबर २०२३ |
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