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       खिली प्रसून फुलझड़ी


तमस हुआ विलुप्त ज्योति की सजी धजी लड़ी
सहस्र रश्मि पुञ्ज संग
दीपमालिका खड़ी

चटक अनार फूटते, सुचर्खियाँ मटक मटक
लुभा रहीं प्रत्येक को उदार मन गया भटक
खिली प्रसून फुलझड़ी
अतुल सहर्ष शुभ घड़ी

दुलार, स्नेह, प्रेम के प्रसंग हैं गली गली
सुरम्य रश्मि वीथिका न भूलता मनुज छली
अनेक इन्द्रधनु सजे
सुव्योम पर नजर गड़ी

उतार आवरण हँसी नई वधू सुभोर सी
अलंकरण सहेजती सुप्रीति में विभोर सी
धवल नवल निशा हुई
सुदीप्त मौक्तकों जड़ी

- प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
१ अक्टूबर २०२२

       

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