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प्यारी-सी
इक फुलझड़ियाँ |
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देख के बिटिया के
हाथों में प्यारी-सी इक फुलझड़ी
बचपन की मासूम दिवाली याद हमें आई है बड़ी
बचपन में हम बड़े ही चंचल छैल छबीले बाँके थे
टिकली, फुलझड़ी, साँप हमें बस मिलते यहीं पटाखे थे
रस्सी बम जो लिया हाथ में
डाँट हमें पड़ती तगड़ी
सजधज कर बाज़ार में जाते हम सब दादा जी के साथ
अनार, रॉकेट, लड़ और चकरी लेते थे सब हाथों हाथ
हड़प लिया करते थे बड़े तब
लग जाती आँखों में झड़ी
धन तेरस को अम्मा जाकर लाती बर्तन और जेवर
देखने वाले ही रहते थे बड़के भैया के तेवर
धौंस जमाया करते हम पर
रह रह के वो हर घड़ी
अनंत चौदस को भिनसारे ही अम्मा हमें जगाती थी
उबटन,तेल लगा के हमको गरम पानी से नहलाती थी
गीले बदन में ठंडी हवा से
भर जाती थी हुड़हड़ी
दिवाली में उतरा करती जगमग तारों की बारात
फुलझड़ियों को गोल घुमाते जो देती सूरज को मात
उस पल में हम राजा होते
सदियों की थी किसे पड़ी
- डॉ. नितीन उपाध्ये
१ अक्टूबर २०२२ |
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