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      फूल बिखेर रहीं फुलझड़ियाँ


यों तो रात अमावस की काली अँधियारी
लेकिन स्वर्णिम फूल बिखेर
रहीं फुलझड़ियाँ

चौहद्दी बाँधे बैठे हैं दीप सुनहरे
सैनिक मानो द्वार खड़े देते हैं पहरे
अंधकार भयभीत भटकता गली-गली में
मिल पाया ना ठौर जहाँ पल भर वो ठहरे

लक्ष्मी के स्वागत की करती हैं तैयारी
साजन घर शृंगार कर रही
हैं साजनियाँ

तम का राज मिटाने को उठ रही उमंगे
मानसरोवर में विकास की मृदुल तरंगे
ज्योतिपुंज लेकर ऊपर आकाश भेदतीं
हैं प्रकाश की डोर लिये उड़ रही पतंगे

चकरी और अनार झूम कर धूम मचाते
ढोलक-शंख-आरती में
गूँजी रागिनियाँ।

- डॉ मंजु लता श्रीवास्तव
१ अक्टूबर २०२२

       

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