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       खिल-खिल हँसती फुलझाड़ियाँ हैं


वंदनवार द्वार पर झूले
खिली उमंगों की कलियाँ हैं
माँ लक्ष्मी! के शुभ स्वागत में
सजी हुई दीपावलियाँ हैं

दीवारों पर शगुन सातिये
शुभता की पावन रंगोली
मंगल कलश आस्थाओं के
खील, बताशे, अक्षत, रोली
जुड़ी हुई विश्वासों के संग
परंपराओं की कड़ियाँ हैं

जगमग घर,बाजार, मुहल्ले
थिरक रहीं बल्बों की लाडियाँ
उतर रही हों आज धरा पर
जैसे नभ की तारावालियाँ
फूट रहीं खुशियाँ अनार सी
खिल-खिल हँसती फुलझड़ियाँ हैं

लड़े बरस भर अँधियारों से
तब लौटे आँगन उजियारे
मन के आलों में सहेज लें
नेह- प्रेम के दीपक सारे
शुभ लाभों के चौघड़िये पर
टिकी उम्मीदों की घड़ियाँ हैं।

- मधु शुक्ला
१ अक्टूबर २०२२

       

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