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        फूलझड़ी के बिना


जलते दीवाली के दीपक
लटके गजरे हार
फूलझड़ी के बिना किन्तु ये
फीका है त्यौहार

कोस-कोस तक बिछा अँधेरा
कुछ तो होगा दूर
उजियारा करने को जलती
फूलझड़ी भरपूर
जलती-बुझती झालर
मिलकर खूब बिखेरे प्यार ‌

कमसिन काया, दहजाने पर
खूब निखरता रूप
चटक सितारे झिलमिल जलते
बुझते लगें अनूप
जितने भी पल जलती दहती
भरे स्वर्ण भण्डार

फूलझड़ी के बुझते सारा
भ्रम हो जाता लुप्त
सभी उजाले हो जाते हैं
दो पल में ही सुप्त
लगने लगते गुमसुम घर के
सारे बंदनवार

फूलझड़ी के जितना
जीवन में रखना बारूद
खुशियों से अनुबंध नये कर
भर तिमिरों के सूद

सौम्य उजाले जीवन में लें
सबके नित आकार

- अनामिका सिंह

१ अक्टूबर २०२२

       

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