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       दीप जलेंगे


दीप जलेंगे फिर से घर घर
दीप पर्व में

सब हाथों में
रंग बिरंगी होंगी फुलझड़ियाँ
नयी पुरानी स्मृतियों की खोलेंगी कड़ियाँ
रोशन जग, मग, किरणें झर झर
दीप पर्व में

कण कण में बहने को आतुर रस की धारा
उत्सवधर्मी युगों युगों से देश हमारा
कलुष भेद मिट जाते अकसर
दीप पर्व में

क्षणभंगुर जीवन है नश्वर चलता चल
कितना कुछ कह जाता दीपक भेद सरल
बाँटें खुशियाँ सबको भर भर
दीप पर्व में

- आचार्य श्रीधर शील

१ अक्टूबर २०२२

       

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