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      जगमग जगमग फुलझड़ी


लेकर आयी फुलझड़ी, खुशियों की बरसात।
दमक रही मावस निशा, करे दीप से बात।।

समता का दीपक जला, भेद-भाव को भूल।
कहे फुलझड़ी देश से, यही मंत्र है मूल।।

फूल गिराते प्रेम के, जली फुलझड़ी हाथ।
मिलके रहना आप सब, तभी रहे जग साथ।।

राम अवध में आ गए, रावण दानव मार।
हर घर छूटी फुलझड़ी, दीप जले घर द्वार।।

नाच रही मन फुलझड़ी, प्रियतम आए द्वार।
स्वागत में है दीप का, हर्षित घर संसार।।

जली फुलझड़ी है लिये, ख्वाबों के मृदु छंद।
झर-झर झरते फूल से, प्रेम भरे मकरंद।।

फुलझड़ियों के खेल में, निकली जब चिंगार।
रंग भंग घर में हुआ, झुलस गया त्यौहार।।

फुलझड़ियाँ कर में जलें, झिलमिल करें प्रकाश।
मिटा दिया भू का तिमिर, चमक गया आकाश।।

लक्ष्मी संग गणेश को, पूजें सारे लोग।
करे प्यार की फुलझड़ी, भस्म घृणा का रोग।।

- डॉ मंजु गुप्ता
१ अक्टूबर २०२२

       

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