अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

       

      चहक रही है फुलझड़ी


चहक रही है फुलझड़ी, चकरी गाए गीत।
आया पर्व प्रकाश का, अंधकार भयभीत।।

जगमग घर, आँगन करें, मन में भरें उमंग।
खुशियाँ इतराती फिरें, फुलझड़ियों के संग।।

जलते दीपक से बढ़ी, अँधियारे की पीर।
फुलझड़ियों ने और भी, उसको किया अधीर।।

गीत गा रही फुलझड़ी, झर-झर झरते छंद।
विह्वल होकर देखते, चमकीले मकरंद।।

अंगारों से फुलझड़ी, खेल रही है फाग।
शायद जलते दीप ने, सुलगा दी है आग।।

सील गयी थी फुलझड़ी, तबियत है नासाज़।
गुमसुम हैं चिनगारियाँ, गायब है आवाज़।।

खील, बताशे, रेवड़ी, मधुर-मधुर पकवान।
किन्तु पटाखे, फुलझड़ी, पर है सबका ध्यान।।

बीच पटाखों के छिड़ी, जंग बड़ी घनघोर।
किन्तु पटाखे, फुलझड़ी, खींचें अपनी ओर।।

फूल उगलती फुलझड़ी, खुश हो रहा अनार।
देख पटाखा जल गया, फटा धमाकेदार।।

दिए जले रोशन हुआ, घर, आँगन, दालान।
फुलझड़ियों ने खींच दी, होठों पर मुस्कान।।

- कृष्ण कुमार तिवारी
१ अक्टूबर २०२२

       

अंजुमन उपहार काव्य चर्चा काव्य संगम किशोर कोना गौरव ग्राम गौरवग्रंथ दोहे रचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है