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       लुभाती रही फुलझड़ी


बचपने से लुभाती रही फुलझड़ी
साथ सच्चा निभाती रही फुलझड़ी

क्वार की धूप में रूप कुम्हला गया
किन्तु नखरे दिखाती रही फुलझड़ी

हाथ आयी, कभी दूसरे हाथ में
रात भर खिलखिलाती रही फुलझड़ी

जब हुई घर हमारे अमावस घनी
झूमकर दिल जलाती रही फुलझड़ी

द्वार,आँगन, हँसे,साथ में दीप भी,
सिर्फ चुटकी बजाती रही फुलझड़ी

नाचते रह गये मन इधर से उधर
बस जिधर लोच खाती रही फुलझड़ी

बुदबुदाने लगे होंठ सबके यही -
फुलझड़ी, फुलझड़ी, फुलझड़ी, फुलझड़ी

- उमा प्रसाद लोधी
१ अक्टूबर २०२२

       

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