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      झर रही है फुलझड़ी


यों कणियाँ झर रही हैं फुलझड़ी से
गिरें ज्यों फूल जादू की छड़ी से

वो बचपन था कि जब इक फुलझड़ी ही
जलाते थे बड़ी ही हेकड़ी से

वहीं सौ-सौ अब आतिशबाजियाँ भी
मिला पाती न बचपन की घड़ी से

सँभलकर ही चलाना, है हिदायत
रखो दूरी पटाखों की लड़ी से

दिवाली पर मिठाई के बहाने
कड़ी मिलती रहे दिल की कड़ी से

तभी शुभ-लाभ आते 'रीत' घर में
न हो जब काम कोई हड़बड़ी से

- परमजीत कौर 'रीत'
१ अक्टूबर २०२२

       

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