|
|
|
|
|
|
घर
आ गयी फुलझड़ी |
|
खील के साथ घर आ गयी
फुलझड़ी
जल गए दीप मन भा गयी फुलझड़ी
जगमगाते हुए पर्व के द्वार पर
देखते-देखते छा गयी फुलझड़ी
तीलियों में भरी मोतियों की लड़ी
तोड़कर नेह बिखरा गयी फुलझड़ी
खिलखिलाने लगी तब फ़िज़ाओं में, जब
एक दीपक से टकरा गयी फुलझड़ी
जिद थी बच्चों की, उनको मिले फुलझड़ी
मिल न पायी, तो कुम्हला गयी फुलझड़ी
पोछ आँसू अभी बालमन के सखे
थाम हाथों को बहला गयी फुलझड़ी
बुझ गयी, दे गयी झिलमिलाती खुशी
सार जीवन का समझा गयी फुलझड़ी
- कृष्ण तिवारी
१ अक्टूबर २०२२ |
|
|
|
|
|
|
|
|
|