अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

आई है दीवाली

   



 

नाचे-गायें ख़ुशी मनायें
आई है दीवाली

धनतेरस खुशहाली लाया
जन-जन का है मन हर्षाया
मिलजुल कर सब सजे-सजायें
आई है दीवाली

आज नरक-चौदस है आई
चलो करें हम साफ़-सफाई
घर-आँगन-चौखट मुस्कायें
आई है दीवाली

है कार्तिक की रात अँधेरी
चंदा ने भी आँखें फेरी
दीप जला तम दूर भगायें
आई है दीवाली

रिद्धि-सिद्धि संग गणपति सोहें
लक्ष्मी रूप जगत को मोहें
हम सब इनको शीश नवायें
आई है दीवाली

खील-खिलौने और मिठाई
लडडू-पेड़े-बालूशाही
आओ सबका भोग लगायें
आई है दीवाली

गोवरधन धन-वैभव लाये
सबने छप्पन भोग चढ़ाये
प्रभु जी सब पर कृपा लुटायें
आई है दीवाली

भाईदूज आज फिर आया
फिर बहना का मन मुस्काया
भैया को रोचना लगायें
आई है दीवाली

चित्रगुप्त जी का हो पूजन
बने ज्ञान से जीवन पावन
नेह शारदा माँ बरसायें
आई है दीवाली

दीवाली का पर्व सुहावन
देता यह सन्देश कि जन-जन
इक-दूजे को गले लगायें
आई है दीवाली

- डॉ क्षिप्रा शिल्पी
१५ अक्तूबर २०१६
   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter