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दीप सदा मैं जलता आया

   



 

दिग्दिगंत तक फैले हो तुम
अंधकार व्यापक माना
सूरज चाँद न साथ रहे पर
नहीं पराजय मैं जाना

अंधकार से लड़ता आया
दीप सदा मैं जलता आया

सघन लड़ी झिलमिल दीवाली
सजे धजे स्तम्भ सभी
जलता मैं भी बिना डिगे ही
रुककर झुकता नहीं कभी

मैं निर्भीक उजरता आया
दीप सदा मैं जलता आया

मैं नन्हाँ पर लाख बड़े
आँधी तूफां से लड़ता हूँ
जितनी बार जलाओ मुझको
मैं फिर-फिर जल उठता हूँ

मैं निष्ठा से बढ़ता आया
दीप सदा मैं जलता आया

महल कुटी में भेद न करता
मुझे जलाओ भले कहीं
पंक्ति में शोभित मुस्काता
एकल भी दुख मुझे नहीं

सबको रौशन करता आया
दीप सदा मैं जलता आया

- सीमा हरिशर्मा  
१५ अक्तूबर २०१६
   

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