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मन कुटिया में दीप बालकर

   



 

मन-कुटिया में दीप बालकर
कर ले उजियारा
तनिक मुस्कुरा मिट जाएगा
सारा तम कारा

ले कुम्हार के हाथों-निर्मित
चंद खिलौने आज
निर्धन की भी धनतेरस हो
सध जाए सब काज

माटी-मूरत, खील-बतासे
है प्रसाद प्यारा

रूप चतुर्दशी उबटन मल, हो
जगमग-जगमग रूप
प्रणय-भिखारी गृह-स्वामी हो
गृह-लछमी का भूप

रमा रमा में हो मन, गणपति-
का कर जयकारा

स्वेद-बिंदु से अवगाहन कर
श्रम-सरसिज देकर
राष्ट्र-लक्ष्मी का पूजन कर
कर में कर लेकर

निर्माणों की झालर देखे
विस्मित जग सारा

अन्नकूट, गोवर्धन पूजन
भाई दूज न भूल
बैरी समझ कूट मूसल से
पैने-चुभते शूल

आत्म दीप ले बाल, तभी तो
होगी पौ बारा

- संजीव वर्मा सलिल
१५ अक्तूबर २०१६
   

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