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दिये के तले भी रहे ना अँधेरा

   



 

करो आज जगमग
दसों ही दिशायें
दिये के तले भी रहे ना अँधेरा

छला आज
जल की सतह को किसी ने
नियम तोड़ बैठा अचानक समंदर
उठा ज्वार भाटा
बिना चाँदनी के
लहर ने कहा दुख सितारों से मिलकर

सहेजो ज़रा
प्रेम की मछलियों को
कि तट पर खडा है अभी तक मछेरा

पुरानी गली की
किसी कोठरी में
छुपे हैं अभी भी कपट द्वेष झाँसे
अमावस गले में
कसे एक फंदा
उखड़ने लगीं धूप की आज साँसें

सँभल कर बिताना
तमस की निशा को
झुके ना कहीं कल शरम से सवेरा

- संध्या सिंह  
१५ अक्तूबर २०१६
   

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