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दीप मुझे तुम-सा जलना है

   



 

दीप मुझे तुम सा जलना है
बहुत कारवाँ मिले राह में
फिर भी एकाकी चलना है

अंतर्मन की चाह अधूरी
नहीं तेल ना बाती पूरी
पाँव थके हैं दूर सवेरा
कठिन डगर है रैन अँधेरी

मुँदे नयन हैं रुके बयन हैं
क्या कहना है, क्या सुनना है?

साक्षी है ये तमस हमारा
हमने कोई समर न हारा
बनती मिटती रेख धुएँ की
दुख का करती है बँटवारा

हर कीमत पर मुझे समय के
आँसू का हर कण चुनना है

दर्प आँधियों का कुचलेगा
आने वाला कल बदलेगा
मिट्टी में यदि मिल जायें तो
एक नया अंकुर निकलेगा

शूल बिछे हों यदि मीलों तक
मुझको तब भी चुप रहना है

- रंजना गुप्ता  
१५ अक्तूबर २०१६
   

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