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लघु-प्राण दीप

   



 

होकर अभीत हुंकार उठे
लघुप्राण दीप
ललकार उठे

सूरज ने शस्त्र झुकाये हैं
सारे नक्षत्र मुरझाये हैं
निष्प्रभ शशि हुआ निराश परम
हर ओर अँधेरे छाये हैं

वन ज्योतिपुंज
साकार उठे

आतंक मढ़ी हो सुबह शाम
वस रावण गरजे अष्ट याम
ऋषि प्रज्ञा भी आहार बने
पर जीतेंगे हर बार राम

जय-जय जग मुग्ध
पुकार उठे

तम के पर्वत को गलने दो
इस ज्योतिपर्व को चलने दो
विश्वास रखो हारेगा तम
साँसों का दीपक जलने दो

वस स्नेह-सजल
साकार उठे

- राम सनेहीलाल शर्मा 
१५ अक्तूबर २०१६
   

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