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दियों की दिवाली

   



 

जो दिये के तल अँधेरा
रह गया था उस दिवाली
इस दिवाली उस तमस को
भी नया दिनमान देना

कुछ अँधेरे झोपड़ों पर
याद रखना इक नजऱ
देखना अबकी चमकती
हर हवेली के परे
संगमरमर की सतह पर
रेंगने के मायने
देखना तब आँख से तुम
बूँद जब कोई झरे

रोक लेना दौड़कर
गिरते फलक के रंग सारे
दे लवों को मुस्कराहट
फुलझड़ी का दान देना

जानने की चाह कैसे हो
अगर संशय न हो
अर्थ का अनुमान तब
जब शब्द से परिचय हुआ
जिन दियों में बस धुआँ है
उन दियों का कल नहीं
पिस गया फुटपाथ पर
जो है दिया सोता हुआ

ढूँढना ऐसे दिये भी
चार, जिनमें तेल कम हो
पथ प्रदर्शक तुम बनो
उनको दिशा का ज्ञान देना

जो अँधेरी राह के
राही छुपे थे रात भर
और जो निकले सुबह
चुकते दियों को ढूँढते
पेट की ही आग में
बुझते रहे जलते रहे
अधजले जो मोम के
टुकड़े मिले कल बीनते

उन भविष्यत् के दियों को
प्रेम का उपहार देना
उन अभावों को जरा संतुष्टि
का कुछ भान देना

- नीरज द्विवेदी
१५ अक्तूबर २०१६
   

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