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दीपों
से कोना कोना निर्झर कर दे
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हम अपने घर दीप जलायें, अच्छा है
मगर जहाँ गम वाले, घने अँधेरे हैं
जिन गाँवों के बेटे, अमर शहीद हुए
आओ हम वो आँगन भी रोशन कर दें
जिस माँओं की, बूढी आँखें गीली हैं
नन्हें बच्चों की मुस्कानें, पीली हैं
जिन अबलाओं के सिन्दूरी, तन उजड़े
राह देखती आँखें, अब पथरीली हैं
आओ ऐसे घने अँधेरे आँगन में
प्यार भरी फुलझड़ियों से हर रँग भर दें
एक नदी है प्यासी, तो भरपूर करें
मिलजुल पसरी हुई उदासी, दूर करें
अमर शहादत का घर नहीं अकेला हो
जय जवान के हुंकारों का, मेला हो
ऐसे गाँव सजा दें, चाँद सितारों से
गली-गली हर देहरी जगमग जग कर दें
हमें दीवाली सौंप, अँधेरे पी गये वो
चूम देश की माटी, कितना जी गये वो
टूट पड़े दुश्मन पर जो, आफ़त बनकर
माँ के देखे घाव, जान दे सी गये वो
तुम्हें कसम है तम न झाँक सके आओ
दीपों से कोना-कोना निर्झर कर दें
- कृष्ण भारतीय
१५ अक्तूबर २०१६ |
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