अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अब की बार दिवाली कैसी

   



 

सरहद पर घनघोर अँधेरा
अब की बार दिवाली कैसी?

देश जंग से जूझ रहा है
नेक इरादे बूझ रहा है
आघातों की मार पड़ी है
विपदा भी तो जमी खड़ी है

तांडव मचा हुआ सरहद पर
कहाँ खुशी खुशहाली कैसी?

शहीद माँ के लाल हुए हैं
सूने सब के भाल हुए हैं
माथे पर ना बिंदिया दिखती
हाथों में ना मेंहदी रचती

रीत गईं मन की आशाएँ
खाली और बहाली कैसी?

सरहद पर गोले बारूदी
जंग की है चिंगारी कूदी
धूल धूसरित कर मानेंगे
धता बता कर ही जानेंगे

सैनिक हैं हम तो हैं प्रहरी
हिम्मत सही जुटाली कैसी?

- आभा सक्सेना
१५ अक्तूबर २०१६
   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter