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दीपक माला में सजे

   



 

दीपक माला में सजे, करते हैं अरदास
हर घर आँगन में करें, माता लक्ष्मी वास

दीप बनाए नैन दो, बाहें बंदनवार
भावों की ये आरती, अम्बे लो स्वीकार

जगमग चूनर ओढ़के, सजी मुँडेरे लाज
मुँह मीठा करवा रही, आतिशबाजी आज

अंतिम जब तक साँस है, तूफानों से रार
जलता दीपक कह रहा, मानूँगा नहिं हार

दीपशिखा जल जल मरी, कोरा दीपक नेह
इन दोनों के नेह में, घृत ने खोयी देह

सार्थक दीवाली वही, 'रीत' हमेशा मान
सूने अधरों में भरे, थोड़ी जो मुस्कान

- परमजीत कौर 'रीत'
१५ अक्तूबर २०१६
   

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