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तुम्हारी और मेरी दिवाली

   



 

तुमने दीपावली मनाई है
दीपावली के सुख खरीदें हैं
दीपक की ज्योति से
मिष्ठानों से
नए वस्त्र, आभूषण, उपहारों से ।

मैंने दीपावली जी है
हर बार
जब मेरे बच्चे
हॉस्टल से लौटते हैं ।

घर- बाहर
लान- दालान
जगमगा उठता है।

बच्चों के क़हक़हों से
सुर संगीत
हर ओर छा जाता है।
बातचीत में मिसरी सी
भर आती है मुंह में ।

उदासी की सब परतें धोकर
आतिशबाजियों से, रोशनी से
चकाचौंध कर देते हैं
बच्चे मेरे मन को।

- मधु संधु
१५ अक्तूबर २०१६
   

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