आओ
ना देहरी पर
एक दीप और धरें
कितना था मुरझाया
आँसू से भीगा मन
नहीं कहीं दिखता था
खुशियों का आवर्तन
अपने भीतर यारा
यत्नों का ठौर करें
उजला करना होगा
आने वाले कल को
संघर्षों की पाती में
मसि बनाएँ बल को
पास दूर के सबके
नेह पर भी गौर करें
दीपों की माला बने
जन गण की एका
मत धर्म वाद कभी
बन ना सकें छेंका
आगे बढ़ते जाना
लक्ष्य को सिरमौर करें
- सुरेश पंडा
१ नवंबर २०१५ |